Friday, September 20, 2024
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क्यों होता है तुलसी विवाह ?

ब्यूरो – सुषमा ठाकुर

तुलसी(पौधा) पूर्व जन्म में एक लड़की थी, जिसका नाम वृंदा था। राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था। बचपन से हीं भगवान विष्णु की भक्त थी। बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी। जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल के दानव राज जलंधर से हो गया। जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था।

वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी। सदा अपने पति की सेवा किया करती थी। एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ। जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा, ‘स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है। आप जब तक युद्ध में रहेंगे, मैं पूजा में बैठ कर आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुँगी और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं अपना संकल्प नहीं छोडूँगी’। जलंधर तो युद्ध में चले गये और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी।

उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके। सारे देवता जब हारने लगे तो भगवान विष्णु के पास गये। सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त है। मैं उसके साथ छल नहीं कर सकता । फिर देवता बोले – भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है। अब आप ही हमारी मदद कर सकते है।

भगवान ने जलंधर का हीं रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये। जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा, वे तुरंत पूजा में से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए। जैसे हीं वृंदा का संकल्प टूटा, युद्ध में देवताओं ने जलंधर को मार दिया और उनका सिर कट कर वृंदा के महल में गिरा। जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पड़ा है, तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े हैं ये कौन है ? उन्होंने पूछा – ‘आप कौन हो जिसका स्पर्श मैंने किया’? तब भगवान अपने रूप में आ गये। पर वे कुछ ना बोल सके। वृंदा सारी बात समझ गई। उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया। आप पत्थर के हो जाओ और भगवान तुंरत पत्थर के हो गये। सभी देवता हाहाकार करने लगे। माता लक्ष्मी रोने लगीं और प्रार्थना करने लगीं। तब वृंदा  ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर सती हो गयी।

उसी राख से एक पौधा निकला। तब भगवान विष्णु ने कहा –आज से इस पौधे का नाम तुलसी है और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा, जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी  के साथ ही पूजा जायेगा। मैं बिना तुलसी  के भोग नहीं करुँगा। तब से सभी तुलसी कि पूजा करने लगे और उनका विवाह शालिग्राम  के साथ कार्तिक मास में किया जाने लगा। इस दिन को देव-उठावनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाने लगा।

                                     रिपोर्टर – अमर सिंह   

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